Modi visit to America gave the world a message of peace

Editorial: मोदी की अमेरिका यात्रा से विश्व को मिला शांति का संदेश

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Modi visit to America gave the world a message of peace

Modi visit to America gave the world a message of peace: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संयुक्त राष्ट्र के भविष्य के शिखर सम्मेलन में यह कहना कि मानवता की सफलता सामूहिक शक्ति में है, युद्ध में नहीं, अपने आप में आदर्श वाक्य है और आज के समय की जरूरत भी। इस समय रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध जारी है, वहीं इजरायल और फिलिस्तीन के बीच भी संघर्ष जारी है। दूसरे अन्य देश भी इस प्रकार के संघर्ष को झेल रहे हैं। यह सब देखकर प्रश्न सामने आता है कि क्या मानवता इसी प्रकार युद्धों में उलझी रहेगी और इसी प्रकार संघर्ष में मासूमों की जान जाती रहेगी। मोदी ने अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान संयुक्त राष्ट्र संघ में विशेष संबोधन के दौरान यह बात कही है।

गौरतलब है कि इससे पहले प्रधानमंत्री मोदी ने रूस और फिर यूक्रेन की यात्राएं की हैं और अब वे अमेरिका की यात्रा भी कर आए हैं। इतने कम समय में दुनिया के तीन अहम देशों की यात्रा और वहां उनके अत्यंत भव्य सम्मान से यह साबित हो गया है कि आज भारत किस प्रकार वैश्विक मित्र बन गया है और सभी देश उसकी भूमिका और जरूरत को समझ रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि एक जमाने में भारत का शिखर नेतृत्व अमेरिका की यात्रा के लिए वर्षों तक इंतजार करता था और फिर अमेरिका की ओर से बहुत हेकड़ी के साथ भारतीय नेतृत्व की अगवानी की जाती थी। लेकिन आज के समय में प्रधानमंत्री मोदी सहज भाव से अमेरिका जा रहे हैं और अमेरिकी सरकार को यह बात समझ आ रही है कि आखिर मोदी की अमेरिका यात्रा के मायने क्या हैं और क्यों भारत को इसका महत्व मिलना चाहिए।

 वास्तव में संयुक्त राष्ट्र संघ भविष्य की योजनाओं पर विचार कर रहा है और प्रधानमंत्री मोदी एवं अन्य राष्ट्रों के प्रमुखों का इस संबंध में उद्बोधन समय की मांग है। यह कितना विचित्र है कि रूस-यूक्रेन के बीच जारी युद्ध को भडक़ाने में जिन देशों का अहम योगदान है, आज वही संयुक्त राष्ट्र में इस प्रकार के शिखर सम्मेलन आयोजित करवा रहे हैं । निश्चित रूप से भारत का युद्ध के प्रति हमेशा नकारात्मक भाव रहा है। भारत वह देश है, जिसने कभी किसी पर पहले हमला नहीं किया है, उसने हमेशा अपनी रक्षा में कदम उठाए हैं। इस समय भी वह जहां आतंकवाद से लड़ रहा है, वहीं चीन एवं पाकिस्तान जैसे देशों से युद्ध के खतरे से भी जूझ रहा है।

भारत के प्रधानमंत्री अगर संयुक्त राष्ट्र में कहते हैं कि हमें मानव केंद्रित दृष्टिकोण को अहमियत देनी होगी तो यह जरूरी है। दुनिया में आधी से भी ज्यादा आबादी ऐसी होगी, जिसकी भोजन, शिक्षा, चिकित्सा और जीवन की अन्य मूलभूत सुविधाएं पूरी नहीं हो पा रही। क्या दुनिया के देशों के प्रमुखों को इन समस्याओं के समाधान पर काम नहीं करना चाहिए। आखिर रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध एक बेहद मामूली बात से शुरू हुआ लेकिन उसमें अब तक दोनों तरफ से हजारों निर्दोष लोगों की जान जा चुकी हैं। क्या उन जानों की कीमत की भरपाई कोई सरकार कर पाएगी। फिर क्यों नहीं हम मानवता केंद्रित होकर विचार करते और अपने कर्तव्य का निर्वाह करते।

गौरतलब है कि प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने वैश्विक राजनीति में भारत का जो प्रभाव बढ़ाया है, वह कूटनीति और भारत की वैश्विक पहचान को बल प्रदान कर रहा है। रूस की यात्रा और यूक्रेन की यात्रा करके उन्होंने यह जता दिया है कि भारत वैश्विक समाज में तटस्थ नहीं अपितु दोनों और सभी पक्षों से गहरा सरोकार रखता है। ताज्जुब की बात यह है कि रूस की यात्रा के दौरान अमेरिका एवं अन्य पश्चिम देशों ने जिस प्रकार से इस यात्रा की आलोचना की थी, उन्हीं देशों ने मोदी की अब यूक्रेन यात्रा के दौरान चुप्पी साध ली। हालांकि अब उन्हीं मोदी का अमेरिका ने अपने यहां शानदार स्वागत किया है। भारत में मौजूदा सरकार ने विश्व को इसका अहसास दिलाया है कि अब पंचशील जैसी नीति भारत में इतिहास बन चुकी है और भारत भी अपनी जरूरत और सहूलियत के मुताबिक उन देशों से वास्ता रखेगा एवं उसे मजबूती प्रदान करेगा जोकि उसके लिए फायदेमंद हैं।

मोदी सरकार का यह प्रयास कितना अद्भुत है कि जो देश आपस में बीते दो साल से युद्धरत हों और जहां निरंतर मासूमों की जान जा रही हो, जोकि अपनी-अपनी जिद पर अड़े हों। उन देशों में बारी-बारी से जाकर प्रधानमंत्री मोदी शांति का संदेश दे रहे हैं। उन्होंने रूस की यात्रा के दौरान वहां राष्ट्रपति पुतिन से इसका आह्वान किया था कि शांति की स्थापना के लिए कदम बढ़ाएं। हालांकि अब यूक्रेन की यात्रा के दौरान भी उन्होंने इसकी जरूरत पर बल दिया। वहीं अब अमेरिका में भी उन्होंने इस बात को दोहराया है। वास्तव में आज के समय की सबसे बड़ी मांग शांति और स्थिरता है। इसके लिए सरकारों को सामूहिक रूप से प्रयास करने होंगे। लेकिन यह भी तय है कि इन प्रयासों में अगर कोताही रही तो फिर स्थिति जस की तस बनी रहेगी। 

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